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वदन पर मैली कुचली धोती, सिर पर गमचा बाँधा।। पग फटे जूतो से लिपटा,नेत्रो में सपना बसाँ।। गठीली चमङी दुर्लभ वदन, पसीना बारह माह बहता।। लङखङाती जवानी नहीं, होगा सच सपना।। भोर का जिससे सवेरा, श्रर्जन हल से करता।। तन्हाई सूरज जिसके मित्र,मेघ की आस जिससे करता।। पृकृति का पृकोप सहे,हर मोङ पर हे बाँधायें।। कुटम्बियों की कडवी बाते सहे,आगाज अंत तक हे विपताये मेहनत का न मिला मूल्य,विचोली ही लाभ उठायें।। सपना फिर हुआ चूर चूर,कर्ज फिर बार बार उठायें।। वेटी का विवाह वेटे की पढाई,हर वक्त चिंता सतायें।। वारिस में टपकती छत्ते,अगली साल वचन मिथ्या करायें।। वर्ष के वर्ष गुजरे,उमृ की उमृ डलती जायें।। मेहनत का न मिला फल, कर्ज में दम तोङती जायें।। पिता का कर्ज वेटा चुकाता,पीङी की पृथा निभायें ।। सोना उगायें धरती से,पहनने से वंचित पायें।। दंलित का दंलित रहा,जिदंगी यही तक रहें।। कृषक पर कैसा अभिश्राप,चकृ कब तक चलें।। वदन पर मैली कुचली धोती,सिर पर गमचा बाँधा।। पग फटे जूतो से लिपटा, नेत्रो में सपना बसाँ।।
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