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निमंत्रण में लोग खाना बङे चाव से खाते हे ।तरह तरह के पकवान देखकर मुँह से लार टपकने लगती हे।एक प्लेट में इतना रख लेते कि पता ही नहीं चलता हे कि खाना हे या भोग के लिए निकाला गया पृसाद हे।पता ही नहीं चलता कि दाल मखनी हे या साही पनीर हे लगता ऐसा हे कि जब से निमंत्रण आया हे तब से वृत रखना सुरू कर दिया हो।सबर नहीं कि थोङा थोङा रखकर खाये,खाना क्या खत्म हो जायेगा।इस वक्त तो सिर्फ खाने पर ध्यान होता हे ।यहाँ कोई नहीं पूँछता जाति क्या है? जो हलवाई लगा हे वो कोण शी जाति से सम्बध रखता हे।बङी बात तो यह हे कि जिस प्लेट में खाना खाते उस प्लेट में किस जाति ने खाया हे इससे भी कोई परहेज नहीं हे। घर में अगर किसी छोटी जाति ने वर्तनं छू लिए तो वर्तन अलग कर दिये जाते हे। जानकार जमादार से छु जाये तो नहाकर घर आगन को गंगाजल से छिङकर पर्वतं करते हे।पर कभी सोचा हे घर से निकलते हे न जाणे कितनो से छुहते हे तब कितने ऐसे हे जो घर आकर नहाते हे। सफर में एक ही सीट पर पास में जो बेठा हे क्या पता हे कोण शी जाति से हे।मै सोचती हूँ भगवान अगर छोटी जाति की अलग कोई पहचान होती तो जीना मुश्किल होता। भगवान कोई जब भेदभाव नहीं हे सबकी रंगो में एक ही खून दोङ रहा हे इंसान की सोच से जाति का निर्माण हुआ हे।अगर कोई छोटी जाति का नेता या अधिकारी बन जाये तो परहेज नहीं बल्कि मान सम्मान से मेहमान नवाजी करेगे।पुराने वक्त में कार्य के आधार पर वर्ग का निर्माण हुआ था पर आज तो सत्ता हासिल करने का अचूक अथिहार हे जिसके वल पर सरकार बनती हे और गिरती हे।भोळी भाली जनता नेता की चिकनी चुपणी बातो में आकर अपने जाति के नेता को विजई बना देते हे।नेता सत्ता पाकर सब बाधे भूल जाते हे। अपनी तिजोङी भरने में लग जाते हे ।छोटी जाति को देखा जाये तो हर तरफ से दो चाक के बीच में पिसना पङता हैं।
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