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धर्म की आङ में रोटियाँ सेकते

साहित्य दर्पण
साहित्य दर्पण
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आज जब धर्म पर विवाद सुरू हो गया हे कि आखिर धर्म की परिभाषा क्या?कही धर्म परिवर्तन हो रहा हे तो पी के फिल्म पर विवाद हो रहा हे।हिन्दू कट्टर समुधाय यह मानते कि सनातन धर्म ही क्यो आडम्बर के घेरे में हे उसे ही क्यो दिखाया बल्कि आडम्बर तो हर धर्म में विद्यमान हे।सच कहूँ तो अपने धर्म की बङाई दूसरे धर्म में कमिया निकाली जा रही हे।देखा जाये तो कुछ समय पहले ओ माई गाँड फिल्म आई थी तब कोई विवाद नहीं था क्योकि उसमें सब धर्म की कमिया दिखाई कि धर्म के ठेकेदार के कैसे अपनी दुकाने चला रहे हे लाचार वेवस  जनता को चूना लगा रहे ।उस फिल्म में सब धर्मो की कमियो का बखान था इस फिल्म हिन्दू आडम्बरो को जायदा दिखाया गया हे। अब पृश्न यह आडम्बरो के पीछे कोई रहस्य हे या जनता के लिए छलाबा ? सब धर्म ये तो मानते हे कि ईश्वर एक ही हे।हिन्दू धर्म में ओमकार एक माना हे जो कण कण में व्याप्त हे जिसका कोई आकार नहीं हे। सृष्टी के संचालन के लिए त्रिदेव का गठन किया गया , सही अर्थो में संसार की बागडोर इनके हाथो में हे।वैसे तो 33करोड देवी देवताओ का बताया गया हे।मुस्लमानो में भी एक ही अल्ला को बताया गया हे जो हर नूर में समाया हे जिसका कोई आकार नहीं हे पर उसने अपने नुमाइनदों को संसार में भेजा जिसे हम मोलबी चिस्ती के रूप में जानते हे।सिक्ख धर्म में एक ओमकारा को बताया गया हे जो कण कण में मोजूद हे इसमें गुरू बताये जाते जो संसार का संचालन करते हे।ईसाई धर्म में जब ईसा मसीह ने खुद को ईश्वर का दूत कहकर सम्बोदन किया था जब पादरी उस कार्य को करते हे।अगर देखा जाये तो उस ईश्वर को बताया गया हैं जिसका कोई आकार नही ही जो हर जीव में मोजूद हे ,संसार के संचालन के लिए किसी न किसी रूप में संसार में अपने बंदो को भेजा हे। हिन्दू धर्म में जायदा देवी देवता वर्णन आता हे सबका अपना अपना कर्तव्य हे ।उसी कां दूसरे रूप को जानते हे , जो मैंने महसूस किया हे।मैने एक किताब में पङा था कि उल्ला की परछाई बादशाह होता हे ।देखा जाये तो सचं ही हे।                                                “ईश्वर का संसार” ईश्वर ने ये संसार बनाया इसको चलाने के लिए देवी देवता बनाये ।सुन्दर संसार की रंचना की,जिसमें पेङ पौधे जीव जन्तु पशु पछी पर्वत ,पर्वत पर सजी बर्फ हिमानी जिससे रिसता रहता पाणी ,नदिया सरोबर तालाब ,सागर  इतनी सुन्दर रंचना की हे कि बखान करना मुश्किल हे।अब सवाल यह उठता हे कि ईश्वर क्या चाहता है?आखिर उसने ये संसार क्यो बसाया? इस पृशन का उत्तर तो ईश्वर ही दे सकता हे।ईश्वर तो यही चाहता हे किं उसके इस संसार में पृत्येक जीव सुखी हो ।अपनी आवश्यकता के लिए इस संसार में पृत्येक जीव जन्तु एक दूसरे पर आश्रय हे। रोजी रोटी के लिए कामकाज करता हे।  अपने पेट के लोग भगवान का भी सहारा लेते हे।उसके नाम पर पृसाद ,फूल ,धूपबत्तीं इत्यादि सामान बेचते हे ।आडम्बर यह सुरू होता हे कि अपनी कामनायें के लिए लोग कही कही दूर पैदल यात्रा करता है,मन्नत मागता हे अगर मेना यह काम पूरा हो जायेगा तो 101 रूपये का पृसाद चङाऊगा या इससे जायदा घूस देने के लिए भगवान से कहते हे। जनता को दुखी देखकर पंण्डित, मोलवी,पादरी या और कोई धर्म का ठेकेदार फायदा उठाता हे,और अपनी तिजौरी भरनी सुरू भी कर देता हे।जनता भी बङे सोख से करोडो रूपये का चडावा चढाती हे ,मन्नत पूरी होने पण पैदल चलती हे , खानपान भी छोड देती हे।जाणे कैसे कैसे मन्नत मागते हैं उनकी इच्छा भी पूरी हो जाति हे।मुझे सबसे पुरी बात यह लगती हे जब कही पृसिद्ध सिद्ध पर दर्शन के लिए जाते तब वहाँ पर ईश्वर के खाने के नाम पर या दर्शन के नाम पर या विशेष भूजा के नाम पर रूपये लेते हे।जैसे ईश्वर के सबसे नजदीक हे जो हमें दर्शन करवायेगे।ये तो मानव सांसारिक बस्तुओ की लालसा के लिए ,भवन जप तप वृत,हज इत्यादि  मागता हे पर ईश्वर से ईश्वर को मागने वाले मानव दुवारा बनाई मन्दिर,मस्जिद गिरजाघर या गुरूव्दारा में नहीं रहता बल्कि हर जीव में रहता हे।उसका कोई निश्चित स्थान नहीं हे।ईश्वर को पाने वाले ईश्वर की बनाई इस संसार के पृत्येक बस्तु से प्यार करते हे सासारिक बस्तु की कोई लालसा नहीं होती निस्वार्थ भाव से सेवा करते तो मानव को ईश्वर कण कण में दिखाई देता हे।ये तो मानव के उपर निर्भय करता हे कि सांसारिक वस्तु चाहिए या ईश्वर को आस्था से बङकर कुछ नहीं हे ,मानव ईश्वर को जैसे मानता हे वो वैसे ही उसकी इच्छा पूरी करता हे।।।                                               “ईश्वर की परछाई” ईश्वर की परछाई हे जो हमारे देश को चलाने वाले पृधानमंत्री और मंत्री जो देश का संचालन करते हे ।उन्ही के हाथो में बागडोर होती हे।हम क्या क्या उम्बीद लगाते हैं कि सरकारी नोकरी चाहने के लिए कितनी मेहनत करते हे अगर नोकरी मिलने के लिए घूस भी देनी पङे तो हिचकिचिते नहीं हे बेधङक दे देते हे।कर्मचारी खूब घूस लेते हे।हालत तो ईतनी खराब हे एक छोटा शा काम करने के लिए घूस लेते हे जैसे बिजली का कनेक्सन करबाना हो तो बीना घूस लिए काम नहीं बनता।सरकार जनता की भलाई के लिए नई नई योजनाओ को लागू करती हे पर बीच में खाने बाले जनता के लिए कुछ ही योजनाये ही पूरी हो पाती हे।सब मानव सनकार से कुछ न कुछ पाने की उम्बीद ही करता हे उसके लिए मेहनत करता हे नहीं तो घूस को आगे कर देता हे पर अपना काम बना लेता हे।पर कोई भी व्यक्ति पृधांनमत्री से मिलने के लिए कोई इच्छा नहीं करता हे।जो निस्वार्थ भाव से मानवता की सेवा करता हे तो उसका पुरूस्कार नोवेल, पदम भूषण,इत्यादि दिया जाता हे।             ”   कर” ईश्वर मानव से कर के रूप में अपनी रंचना से सीमित साधन का उपयोग करना और मानवता को बचाना यही कर होता हे।जब हम कन नहीं चुकाते हे तो इसका दुःपरिणाम हमें पृकित आपदा के रूप में चुकाना पङता हे। सरकार को हमें बस्तुओ पर कर लगाके देना पङता हे जो हमें किसी न किसी रूप में वापिस देना पङता हे अगर हम कर की चोरी कर ले तो हमें संम्मति से हाथ धोना पङता हे ।”ये मैने लिखने की कोशिश की हे जो मैंने महसूस किया हे सही अर्थो में आडम्बर किया हे।क्या ईश्वर कहते हे कि पैसे दो तब काम होगा पूरा या सरकार कहती हे कि घूस दो तब काम या नोकरी मिलेगी।                                                       संदेश:अगर मैने कुछ किसी के धर्म के बारे में गलत लिखा हो जिससे में अवगत नहीं हुई हो तो मुझे माफ करना पर मैने सच लिखा हे जिसको मैंने महसूस किया हे।।

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