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“आज भी प्रेम एक श्राफ”

साहित्य दर्पण
साहित्य दर्पण
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अभी हाल ही में उत्तर पृदेश में घटना घटित हुई हे कि एक व्यक्ति की निमर्य हत्या कर दी गई।ये हत्या ससुराल के सदस्यो ने की थी।दो साल पहले प्रेम विवाह किया था जो सबकी रजामंदी से नहीं हुआ था, बल्कि भाग कर हुई थी। ये घटना तो उजागर हो चूकी हे पर न जाणे ऐसी घटनाये सिर्फ पर्दे में ही कितनी छुपी हे ,उन घटनाओ को दुर्घटना का नाम देकर बंद कर दी जाति हे।आज हम 21वी शदी में जी रहे हे और सोच कितनी तुच्छ हे।क्यो प्रेम विवाह को मुश्किलो से गुजरना पङता हे।में इस समाज से पृश्न पूँछना चाहती हूँ कि सिर्फ प्रेम विवाह के लिए मृत्यु क्यो और ऐसे कंलकित कार्य होते हे उनको क्या सजा का पृवधान हे।मेरा कहने का तात्पर्य उनसे हे जिनके दामन कितने पवित्र हे खुद से पृश्न पूछो? चोरी चोरी न जाणे कितने रिस्तो को शर्मशार किया हे , अवेध रिस्ते स्थापति किये उनको नाम नहीं बल्कि अपना मतलब सिद्ध किया हे ,उन पर कोण ऊगली उठाता हे जो खुल कर प्रेम स्वीकृति मागते हे बताते हे तो उन्हे कुदृष्टी से देखते हे कि कितना निदर्नीय कार्य किया हे।पूरा गाँव खिलाफ हो जाता हे।यही कार्य पर्दे के पीछे पनपता रहे तो कोई बात नहीं हे।यहाँ यही बात हो गई अगर चोर ने अपना गुनाह कबूल लिया तो मान नहीं चूप रहा तो सम्मान हे।किसने ये हक दिया हे कि प्रेम करने वालो को मृत्यु दी जायें।सजा तो उनको दी जानी चाहिए जो अपनी वासना में इतने अंधे हो जाते कि हर रिस्ते दागदार करते हे ,उनके लिए औरत सिर्फ भोग की वस्तु हे कोई और रिस्ता नहीं हे।बहुत से ऐसे भी व्यक्ति ये जिनके लिए अपनी मा बहिन वेटी सम्मान हे और कोई मा बहिन वेटी कोई नहीं हे बल्कि भोग की वस्तु हे।मै किसी पर ये दोष नहीं लगा रही हूँ बल्कि ये हकीकत विध्यमान हे।साथ में वीवी चल रही होगी और पास प से कोई लङकी गुजर जाये तो यही कहेगे क्या माल हैं या कुछ नहीं कहेगे पर मुङकर देखेगे जरूर।हा ये भी सही हे आँखे दी हे तो देखेगे पर नीयत अच्छी नहीं रखते हे। प्रेम विवाह कोई अपराध नहीं एक दूसरे को पंसद किया हे उसी के साथ अपना जीवन व्यतीत करना चाहते तो गलत नहीं उनका सम्मान करना चाहिए ,गाँव या किसी भी सम्मपति से भयिष्कार नहीं करना चाहिए। सजा देना हे तो उन्हे दे जो अपनी वासना की पूर्ती हेतु रिस्ता बनाते हे पर नाम नहीं देते और चलते रहते हे।ऐसे व्यक्ति से समाज मुक्त करना चाहिए जो रोग घेलाते जिसके नक्से कदम पर पीणिया चल रही है,जो कहते हे मोज मस्ती किसी से भी करो पर शादी अपनी जाति में या बढो की मर्जी से करो। ये सही नहीं हे अगर शादी बढो की मर्जी से करनी हे तो किसी के सम्मान से नहीं खेलना चाहिए।

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