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दिल्ली का चुनाव शंतरज का खेल

साहित्य दर्पण
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दिल्ली के चुनाव के रूप में अगर महाभारत का युद्ध देखे तो सही हे क्योकि अब दिल्ली का चुनाव जनता के कर्मष्ठ जुझाऊ नेता के रूप में दर्शाना नहीं हे अपतु अब पृश्न स्वाभिमान का हे क्योकि एक और केजरीबाल पर 49 दिन की सरकार चलाने के बाद अपने कर्म से पीछे हटने का जो जख्म हे जिससे जनता ने आरोप लगाये हे कि अपने कर्तव्य से पीछा छुटाने के लिए दिल्ली बालो को बीच मजधार में छोङ गये।केजरीबाल की महत्वकाक्षाँ इतनी तीव्र थी कि एक पंतग तूफान को परास्त करने चली थी जिसका परिणाम यह हुआ जिससे केजरीबाल पर दिल्ली की जनता आँखे बंद कर विश्वास करती कि अब हमें कोई 15 साल की मन मर्जी की सरकार से निजात दिलायेगा जिसने कितने घोटाले किये ,जंग लगी पतवार पर विश्वास हट चुका था ,एक साफ छबि के रुप में केजरीबाल को चुना था पर वो बीच में छोङके चला गया। बीजेपी जब से संसद के चुनाव में पूर्ण बहुमत मिला हे और विधानसभा में एक के बाद एक विजय मिलती जा रही हे तो अब दिल्ली पर विजय स्वाभिमान बन गया हे जो विपक्ष बार बार यह आरोप लगा रही हे कि मोदी की आँधी थम गई हे।दिल्ली एक राज्य नहीं हे बल्कि भारत का हृदय हे जिसमें जिसकी विजय से धङकन धङकेगी उसी का सम्पूर्ण भारत पर राज होगा। अपने अपने स्वाभिमान को बचाने के लिए शंतरज के मोहरे बिछा दिये हे।बीजेपी ने देखा कि आज भी जनता की पहली पंसद केजरीबाल हे तों हङकम्प मच गया और केजरीबाल की काँट खोजने लगे जो उसे बराबर की टक्कर दे शके ,जो उसके मनोभाव को अच्छी तरह पढ शके,अपने बादशाह के रूप में किरण बेदी को उतार दिया जो अपनी आन बान शान की जीती जागती मिशाल हे जिसने तिहाङ जेल का माहोल बदल दिया ,खुद इन्द्रिरा गाँधी की कार रूकवा ली ।अपने तेज तराक व्यक्तित्व के कारण अलग पहचान हे अब आलोचक यह भी कहते हे कि जो सीधे सीधे नरेन्द्र मोदी पर गुजरात दंगो पर पृहार करती थी वही आज बीजेपी का दामन थाम लिया।समय बहुत बळवान हे कभी भी किसी का नजरिया बदलवा सकता हे।राजनीति का खेल ही शंतरज हे कब प्यादे बादशाह को मात दे दे।साजिया इल्मी को आम आदमी पार्टी एक हारा हुआ प्यादा ही समझते थे पर ये भूल गये ,विभीषण को रावण ने निकाला तो ये भूल गया कि विभीषण को ही पता था उसकी मृत्यु का राज जिसके कारण रावण की पराजय हुई और कहावत बन गई”घर का भेदी लंका डाये” कही ये सच न हो क्योकि शाजिया इल्मी को पता हे कि आम आदमी पार्टी की क्या कमजोरी हे सबकी कोई न कोई कमजोरी होती हे।अभी तो बहुत कुछ देखना बाकी हे जैसे जैसे चुनाव की तारीख पास आती जा रही हे शंतरज का खेल रोमाचंक होता जा रहा हे।बीजेपी कूटनीति राजनीति के पत्ते पहले नहीं खोलती हे माहोल को पहले समझती हे फिर अपनी चाल चलती हे जिसको देखकर दंग रह जाते हे।मोदी की लहर कायम हे या केजरीबाल की ईमानदारी छबि बरकरार हे। कांगेस का अभी कोई बोलबाला नहीं हे क्योकि एक के बाद एक मुहँ की खानी पङ रही हे हर जगह से निराश का मुहँ देखना पङ रहा हे।सच बात तो यह हे कोई दमदार नेता नहीं जिसपर जनता भरोसा कर सकें।सबके दामन मे घोटाले की झङी लगी हे ,अभी वक्त खराब हे फिर क्या पता सरकार बनाने में अहम भूमिका भी निभा सकते हे।ये शंतरज का खेल हे एक गलत चाल से खेल बिगङ सकता हे।जो होगा हम सब जनता को इंतजार हे बस अब तो सरकार बननी ही चाहिए जो 1साल सह रही हे।                             sammi.jadon83@gmail.com

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