Menu
blogid : 19918 postid : 838447

मेरे सपनो का भारत”

साहित्य दर्पण
साहित्य दर्पण
  • 64 Posts
  • 33 Comments

मेरे सपनो का भारत कैसा हो तो एक अजब शी छबी बनती हैं।पृकिति सौन्दर्य तो स्वय एक बरदान हे बस हमें उसका ख्याल रखना हैं।किसी भी देश की तरक्की या पहचान यसमे रहने बाले लोगो से बनती हे।ये कहावत सत्य है”नीव मजबूत होगी तो मीनारे मजबूत होगी।”आज हमारे देश में बुनियादी ढाचा कमजोर हे मेरे बात शिक्षा से हे शिक्षा के नाम पर सरकार करोडो रूपये खर्च करती हे पर  सुधार की वजय स्थर गिरता जा रहा हे।आकङो के माया जाल में शिक्षा को विकास की और दिखाया जाता हे कि कितनी पृगति की हे पर सच तो हे कि हम बहुत पिछङ गये हे।एक जमाना था कि इण्टर पास के बाद एक अच्छी नोकरी मिल जाति थी और ज्ञान का स्थर उच्च था तब पढाई  एक बुद्धि को विकसित करना न कि पृमाण पत्र तक सीमित था कि ।आज पृमाण पत्र की संख्या बहुत हे पर बुद्धि विकसित के नाम पर सून्य हे। जब हाईस्कूल और इण्टरमीडियट का परीक्षा फल आता हे तो पृथम की झङी लग जाति हे और तृतीय तो कोई कोई आता होगा।एक वो जमाना था जब पृथम कोई कोई आता था द्वतीय की झङी थी।विकसित के नाम पर कोरा दिमाग हे ज्ञान तो कोशो दूर हे।इण्टर पास के  आज प्राथमिक बच्चा को ठीक से हिन्दी की किताब पङ पढना नहीं आता हे। प्राथमिक बिद्यालय में 5 अध्यापक होने चाहिए थे वहाँ पर एक या दो अध्यापक ही संचालन करते हे।बच्चा पर पर कोई डर ही नहीं हे क्योकि कानून के दुवारा ये निषेध है,मेरा मानना हे जब पक डर नहीं होगा तब तक वो एक अच्छा व्यक्ति नहीं बनेगा क्योकि घङे को मजबूत बनाने के लिए लकङी के हथोडे की मार पङती हे तभी घङा मजबूत बनता हे।मेरा मानना हे कि बच्चो पर पिटाई नहीं बल्कि कोई ऐसी सजा सुनश्चित की जाये जिससे मानसिक शारीरिक पृतारणाओ के बाबजूद सजा डी जाये जिससे बच्चो के मन में डर हो तभी एक भाभी व्यक्तित्व का निर्माण होगा।अच्छे नम्बर का अम्बार नहीं ईमानदारी से लाये तृतीय भी कसोटी पर खरी उतरे ,जितना अपने ज्ञान से जितने भी अंक अर्जित किये हो वो किसी भी नोकरसाई नोकरी के लिए पृतिबंद न हो बल्कि सबको बराबर का मौका मिले ।अंक पृतिभा का आकलन का मापदङ न हो ।क्या पता आज के इस मनोभाव के दोर में काबलियत हे कही दम न तोङ दे पृतिसत के षडयन्त्र में हीरा को कोयला की भेट न चङ जायें। मैरे सपनों के भारत में अंक के आधार पर नहि पृतियोगियता के आधार पर आकलन हो सबको बराबर का मोका मिलना चाहिए।शिक्षा के जरजर हो रहे ढाँचे को मजबूती देनी चाहिए ।शिक्षक का केन्द्र सिर्फ शिक्षा पर होना चाहिए ,उनसे किसी और सार्वजनिक कार्य जैसे जनगणना ,मतदान से सम्बन्दित कोई और कार्य न दिया जायें ,जिससे शिक्षण का ध्यान भटक जाता हे और शिक्षा व्यक्तित्व की खाना पूर्ती रह जाति हे। हम सपने सपनो के भारत को सही दिशा देना चाहते हे तो बदलाब जरूरी हे।                                                  रिस्वत या घूस

Read Comments

    Post a comment