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में चूपचाप वैठी सोंच रही थी,क्या खोया क्या पाया हमने! खुद के अन्दर झाँक रही थी,क्या खोया क्या पाया हमनें!! वचपन था कितना भोला, झगङे थे पर अच्छे थे! झगङे में सो किस्से थे, किस्से ही तो हिस्से थे!! खुद के अन्दर झाँक रही थी,क्या खोया क्या पारा हमने!! जवानी में बङे झवेले थे,अंजानी शी राये थी! किसी की यादों में खेले थे,दोस्तो के संग गलियो चे मेळे थे!! लगते हसीन मेळे थे, शादी हुई तो समझे थे!! खुद के अन्दर झाँक रही हूँ,क्या खोया क्या पाया हमने!! कल की चिन्ता करते थे,सुबह से शाम कामकाज करते थे!! आकाँक्षो का विस्तार था,थमता नहीं तूफान था!! कब जवानी चली गई,कब बुढापा आया समझे नहीं थे!! खुद के अन्दर झाँक रही हूँ, क्या खोया क्या पाया हमने!! बुढापें में खुद का साथ छूट रहा था, बीमारियाँ घेर रही थी!! बीते पल मुझसे पूँछ रही थी , अच्छा था सच में वचपन! सच्चा था सच में वचपन,न था कोई बैरी सब थे अपने!! कोई दीवार न थी,हँसते थे रोते में ही हँसते थे!! क्यो आती हे जवानी? क्यों आता हे बुढापा हे? क्यो समय हे बदला??? खुद के अन्दर झाँक रही हूँ, क्या खोया क्या पाया हमनें!! मजहब की खिचती दीवारे देखी,माया के लिए लङते देखा!! मुस्कान थी चहरो पर , दिल में खिचती तलवारे देखी!! वचपन प्यार का झरोखा देखा,बाकी हर पल आसू देखे!! बाकी हमनें खोया,वचपन में ही पाया हमनें!!: खुद के अन्दर झाँक रही थी,क्या खोया क्या पाया हमनें!!
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