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इंसान की मनमानी

साहित्य दर्पण
साहित्य दर्पण
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ये भोले इंसान क्यो करता मनमानी? कागज के टुकङो में क्यों ईमान झोके!………………………………………………… समय की आहट सुनो,,,,जलजला क्या कहता है?                   प्रभू के नाम पर क्यो कमाते धन?पाप के जलजला में संसार ढहता हैं…………………………………………………………     प्रभू के वर्चस्व पर कोई प्रभाव नहीं,उत्तराखण्ड डूब गया सैलाब में……………………………………………………………केदार नाथ का मंन्दिर एक छत्र खङा रहा,थर थर कापी धरती नेपाल डगमग हो गया…पशुपति नाथ मंन्दिरजल जला में बचा रहा …………………………………………        संजोग नहीं वार वार चेतावनी है……………………………… आस्था पर प्रभार सफोले कर रहे है,अचेतन मन को चेतन मन सतुष्ठी में जाते है,प्रभू के द्वार धन से दर्शन पाते है………कैसा आडम्बर छल छलावा रचते है,……………………………जाग जा इंसान आस्था पर प्रहार न कर,प्रभू के नाम पर धन न कमाकर…………………………………………………………प्रकृति के सौन्दर्य को अपने लिए छला,उजङ रहे चमन वीरान बना!!गिर के सीने पर प्रहार कर,धारा का मार्ग बदलकर!!प्रकृति से बैर ले रहे है!!!ये भोले इंसान सबक ले……………………………………………………………………सुबुक सुबुक रोता हे अपना खोता है,आँखे जाये पथियारी बार बार ताँकता है………………………………………………बिछङ गई मा वेटे से ,वेटे मा से,,परिवार से बिछङा  हुआ अनाथ!!!……………………………………………………………तिनका तिनका जोङकर बना घरोधा,जलजला सबको ले डूबा…………………………………………………………………कभी ऐसा सोंचा न था ,जमीं कम पङ जायेगी,लो ऊँची उठ जायेगी…………………………………………………………… इस संसार में सबकुछ खोकर ,में अकेला रह जाऊगा!! दर्द का ऐसा सैलाब उमङा,हर आखे हुई नम,सात्वना सबका धैर्य धरे …………………………………………………………………ये भोले इंसान सभल जाओ,आस्था पर प्रहार न करो,प्रकृति का उजाङ न करो…………………………………………

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