Menu
blogid : 19918 postid : 889604

“अहम का बार”

साहित्य दर्पण
साहित्य दर्पण
  • 64 Posts
  • 33 Comments

अहम का वर्चस्व,

स्वयं गाथा कहता है!!

कोई बच न सखा बार से,

सबका ढका डहता है!!

अहम की बेदी पर चङा जो,

खाक में मिल जाता है!!

सूरमाओ का सूर्य अस्त,

छिन्न भिन्न इतियास दोहराता है!!

सौन्दर्य का किया अहम,

महाभारत रचवाता हैं!!

सत्ता का प्रचण्ड अहम,

कुलहीन विनाश करवाता है!!

बुद्धी का ज्राता भी क्या,?

भंभर से बच पाता है!!

वल भी काम न आयेगा,

जहर से कोण बच पाता हैं!!

जङ,जोरू, जमीं, पर किया अहम,

त्राही त्राही करवाता है!!

करो न अहम किसी बस्तु का,

सब कुछ बिलीन हो जायेगा!!

जियो और जीने दो,

संसार में रम जायेगा!!

Read Comments

    Post a comment