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काफिलो का जमघट,
लगता हर जगह मेला!
सेनानायक शी हिम्मत नहीं,
जनता जर्नादन का लगता खेला!!
बाँध कर रखे क्यो सपने,
हुनर के दरवाजे खोल दो!!
झुकना जिसे आ गया,
पंताका उसी ने फैराया!!
हट्टाहस करती हे जनता,
हे झुकना जिसने चाहा!!
खङा रहा अहम के वंश,
एक झोका में उखङ गया!!
निर्भीक उसकी हिम्मत,
साहस उसका परिचय!!
झुकना उसका मान सम्मान,
पिघला लोहा बनता फोलाद!!
सम्मान को करे तिरस्कार,
पराक्रम से करे परास्त!!
सोच अलग थलग जिसकी,
खुद व खुद किस्से बन जाते!!
राग की धून पर प्रेम,
स्नेह लुटाना आता है!!
हर मायूस चहरे पर,
मुस्कान लाना आता है!!
द्वेष किसी से क्या करे,
छोटा जीवन छोटी बात!!
तम से घिरा हे जीवन,
रोशनी बनना हे आता!!
काफिलो के जमघट से,
एक किरण तुम भी बनो!!
झाँको खुद के अंदर ,
अच्छा क्या हे छुपा!!
आसू न दो किसी को,
मुस्कान सबकी बनो!!
एक अध्याय ऐसा लिखो,
जिस पण नाज सब करे!!
बन जाये बंदगी सबकी,
जिंदादिल कहाणी लिखो!!
काफिलो के जमघट से,
एक किरण तुम भी बनो!!
झाँको खुद के अंदर,
अच्छा क्या हे छुपा!!
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