Menu
blogid : 19918 postid : 932178

“तुम चलो हम चलें “

साहित्य दर्पण
साहित्य दर्पण
  • 64 Posts
  • 33 Comments

तुम चलो हम चले,

एक नया राग बनाते चले!!

मायूस हर चहरे पर,

उम्मीद की मुस्कान लाते चले!!

दीपक से दीपक जलाते चले,

तूटे सपनो को आस बधाँते चले!!

अकेली हूँ उम्मीद के पथ पर,

सहयोग से काफिले बनाते चलें!!

तुम चलो हम चले ,

एक नया राग बनाते चले!!

लाचार वेबस ताकती आँखे,

सहारा से लङी बनाते चलें!!

मादकता जाल को त्यागे,

कर्मषठ लोह जलाते चले!!

वंजर जमीं में भी हम,

उम्मीद के फूल खिलाते चलें!!

तुम चलो हम चलो,

एक नया राग बनाते चलें!!

हर गृह में दुख अपार हैं,

हर दुख को साझा करते चलें!!

उम्मीद की प्रेणा बनकर,

गिर पर भी राह बना चलें!!

पत्थरो को भी जान देकर,

अमृत धारा निकाल चलें!!

तुम चलो हम चले,

एक नया राग बनाते चलें!!

हार उम्मीद का अंत नहीं,

अमावस्या के बाद पूर्णिमा दिखा चले!!

घनघोर निशा के बाद,

अरूणिमा बिखेर चले!!

सोंच शून्य पर? नहीं,

प्रश्नो का अम्भार बना चले!!

शिथला लङखङा रही उम्मीद,

होशलो से ऊर्जा भर चलें!!

कंकरीला पथरीला काँटो का पथ,

लक्ष्य केन्द्रित सिखा चलें!!

आखरी श्वास लहू बाकी ,

उम्मीद की आस दिखा चलें!!

गरीब की कुटिया धन से नहीं,

मन चेतना से अमीर बना चलें!!

फुटपाथ पर भविष्य मांगता भीख,

बाजूबल मेहनत का पाठ सिखा चलें!!

भूखे लाचार को रोटी दे,

कमाने के हुनर सिखा चलें!!

सुख दुख मिल कर वाँटे,

एक अलख ज्योति चला चलें!!

तुम चलों हम चलें,

एक नया राग बनातें चलें!!



Read Comments

    Post a comment