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गाँव बिन कहाँ भारत

साहित्य दर्पण
साहित्य दर्पण
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पौ फटतें ही पंछी सुर में राग सुनाते है!
खेत खलियान से खुसबू मंद मंद आती है!!
भीनी 2खुसबू की दस्तक मन को हरसाते हैं!
गाँव की छबी मनोरम मन को मोह लेते हैं!!
हर घर आगन तुलसी औषधि की याद दिलाती हैं!
पंचायत का लगता जमघट भेदभाव सब भूल जाते हैं!!
संस्कृति की कल्पनाओ का साक्षातार रूब रूह पाते हैं!
धोती कुर्ता सिर पर पगङी पाँव में जूता देखते हैं!!
सिर पल्लू साङी में लजाती बालायें लाजवंती देखते हैं!!
मिट्टी में धमाचौकङी करते बच्चे खूब हरसाते हैं!!
पेङो से लहराती हवा कोपलो से पीयु2धून सुनाते हैं!
कङ कङ से आती हे सुंगन्ध छाप हृदय में बस जाति हैं!!
दूध दही छाँच की सरिता घर आगन बहती जाति हैं!
आ जायें कोई शहरी बाबु दामाद शी खातिर पातें हैं!!
मातम हो खुशिया भाईचारा हर बिधि को मिल वाँटते हैं!!
संध्या वाती की आवाज मिठास शा रस घोलती हैं!!
खुले आकाश में सोना तारों से बतलाना चाँद को देखते हैं!!
दादी नानी के किस्से कहाणी खूब सबको भाते हैं!
गाँव के बिना भारत की किलकारी अंधूरी हें!!
खेत खलियान के बिना जीवन का आधार अधूरा हैं!
किसान तेरे बिना हर प्रणी अंधूरा अंधूरा हैं!!
तुझे करू वंदना वार वार तुझ बिन सब सूना सूना है!!

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