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जिंदगी एक पहेली

साहित्य दर्पण
साहित्य दर्पण
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जिदंगी एक पहेली हैं!
उलझे उलझे किस्से हैं!!
फिर भी जिदंगी के हिस्से हैं!
जिदंगी एक पहेली हैं!!
महलो का कोई हैं राजा!
कुटिया का कोई हैं दासी!!
छप्पन पकवानो से भी रूठे!
कोई सूखे टुकङे को भी ताँके!!
मखवल की सेज नींद को तरसे!
खुले आकाश में बेसुध सोयें!!
बनाके अजब गजब नमूना!
दिन रात मेहनत में झुलसे!!
मूल्य कहाँ कीमत को तरसे!
अमर नाम किसी के हिस्से!!
जिदंगी एक पहेली है!
उलझे उलझे हिस्से है!!
ठाना हे कुछ कर गुजरने की!
पग पग होती हैं परीक्षायें!!
चमका फिर ऐसे हैं सितारें!
कोयले से निकले हे हीरे!!
जन्म से मिले शान सोकत!
सूरज के समक्ष जैसे दीपक!!
हस्ती भी नहीं कस्ती भी नहीं!
धनासेठ की बनके रहीं औलाद!!
जिदंगी की पहेली सुलझानी हैं!
हर रूप में देनी हैं परीक्षायें!!
मुश्कलो के आगे हैं जीत!
प्रखर ज्योति बनके हे दमकें!!
उम्मीद की आस हे तबतक!
जिदंगी में सास हैं जबतक!!
जिदंगी एक पहेली हैं!
उलझे उलझे किस्से है!!
फिर भी जिदंगी के हिस्से हैं!
जिदंगी एक पहेली हैं!

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