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कहने को आजाद हूँ

साहित्य दर्पण
साहित्य दर्पण
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कहने को आजाद हूँ,
मगर आजाद हूँ कहाँ?
नापने को आकाश हैं,
मगर जमीं का मोहताज हूँ!!
ये कैसा पक्षपात हैं?
आरक्षण की भेट चङता,
सामान्य युगुल समाज है!!
कहने को आजाद हूँ,
मगर आरक्षण विष हैं!!
आज भी हम पर,
कोई करता राज है?
घूस का महाजाल हैं,
हर तमगा बेहाल हैं!!
कहने को आजाद हूँ,
मगर घूस महाजाल है!!
धर्म की औट कर,
दंगा फसाद हैं करते?
सत्ता की रंगरलियाँ ,
जनता पर प्रतिघात करते!!
कहने को आजाद हूँ,
मगर धर्म ही कहर हैं!!
अपृश्यता का बोलवाला,
गरीब का भी कोण भाया?
बाहुवली करते हे राज,
कानून का करते परित्याग!!
कहने को आजाद हूँ,
मगर वाहुवली का राज हैं!!
आंतक का नया हे रूप,
नक्सल आतकवादी कहर हैं?
कब जन बने शमशान ,
हर पल डर का साया है!!
कहने को आजाद हूँ,
मगर दशसत का गुलाम हूँ!!
नारी की दैयनीय दशा ,
हर वर्ग पर प्रहार है?
दहेज भूड हत्या करते पाप,
अश्मत पर होते प्रहार है!!
कहने को आजाद हूँ,
मगर नारी उपभोग है”!!
गरीब की आवाज लुप्त,
अमीन की आवाज झनकार?
पैसे का रूतवा हे आज,
कानून को करे विमुख!!
कहने को आजाद हूँ,
मगर अमीरो का राज हैं!!
अन्न राज हे किसान,
कर्ज बना जी जंजाल हैं?
आत्मदाह करते हैं किसान,
भूमि अधिग्रहण की फास!!
कहने को आजाद हूँ,
मगर किसान बेहाल है!!
कहने को आजाद हूँ,
मगर आजाद हूँ कहाँ?
नापने को आकाश हे ,
मगर जमीं का मोहताज हूँ!!
(आकाँक्षा जादौंन)

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