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कुर्वानी पर तर्क को जबाब

साहित्य दर्पण
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“कुर्वानी के नाम पर पाखण्ड” मैने जो लेख लिखा था उस पर बहुत से लोगो ने बदलाव की एक पहल के नजरिये से देखा कि बदलाव का बीज वो दिया है एक दिन समाज में परिर्वत ज़रूर आयेगा ।पर कही ऐसे भी व्यक्ति थे जो हमसे तर्क कर रहे थे कि कुर्वानी हम किसी एक समाज में रह रहे समुदाय के बारे में ही लिखा है ।हम ने कहाँ पढ़ने वालो ने अंधूरा पढ़ा है कि कुर्वानी का ही ज़िक्र है अगर वली शब्द भी पढ़ लेते तो शायद समझते कि मेने अपनी कलम का मुख समाज की निन्दनीय घटना के बारे में लिखा है लेकिन फिर भी तर्क कर रहे थे हम कुर्वानी देते है ग़लत कैसा ? तो उन सबको हम अपने मनो भावो को एकाग्रता और चिन्तन से जबाब देने की कोशिश कर रहे है और उन सब से प्रश्न भी पूँछ रहे है?पहले तो हमारे शरीर की वनावट शाकाहार जीव की तरह है जैसे बकरी ,बकरा,हिरन, विशाल जीव में हाथी ये सब क्या खाते है घास,साक ,पत्ती जिनके डाँटो की वनावट हमारे जैसी ही होती है।जो जीव मांसाहारी होते है उनके डाँटो की बनावट अलग होती है चीङ फाड़ करने के लिए आगे के दाँत नुकीले होते है।अब सोचो हमारे डाँटो की वनावट कैसी है,,?सोचो शेर चिता शिकार जायदा तर शाकाहारी जीवो का शिकार ही क्यों करता है ? विशालकाय हाथी का शिकार कभी अकेले नहीं कर पाता है क्योकि हाथी ही पछाङ देता है ।एक शिकार करने के लिए झुण्ड अनेक शेर मिलके शिकार करते है। एक और घोड़ा की शक्ति का यानिक दौड़ में सब लोहा मानते है आज भी बाहन को हार्स पावर के नाम से जानते है जिसका प्रिय है चना जो प्रोटीन से भरपूर है।जो सर्वभक्षी होते है जो न तो शाकाहारी है न तो मासाहारी है जैसे कुत्ता बिल्ली आदि ये किसी एक चीज़ पन निर्भर नहीं रह सकते है।अब मेरा उन महोदय से प्रश्न और उत्तर भी है जो कहते है कि कुर्वानी का एक चौथाई भाग गरीबो को देते है जो प्रोटीन से भरपूर है तो सुनो महोदय तुम एक बकरे से कतनो का एक वक्त पेट भर सकते है?अब सुनो मेरा जबाब प्रोटीन की बात है तो चना प्रोटीन में सर्व है क्योकि एक घोड़ा चना खाकर आज भी वाहन में होर्स पावर से स्थान क़ायम है। चना 50 रुपये में एक किलो मिल जाता है जिसे अगर चार व्यक्ति भी खा ले तो दो वक्त खाना हो जायेगा।अब सोच लो 1 कुंटल से कितनो को प्रोटीन मिल जायेगा,,,अब एक प्रश्न और स्वय उत्तर भी दे रहे थे कि मेरे खून पसीने की कमाई को व्यापारी बहुत मुनाफा कमाते है जो 1बकरे को 5 हज़ार मे देते है,,तो सुनो महोदण ये कैसे कह कह सकते है तुम्हारी कमाई खून पसीने की बाकी सबकी पानी की है ।हर व्यक्ति की जब जब ज़ेब से पैसा निकलता है तो वो यही कहेगा मेरे खून पसीने की कमाई है तुम किसी को नहीं कह सकते कि सिर्फ़ तुम्हारी कमाई ही मेहनत की है बाकी सबकी पानी की कमाई है । एक महोदय ने यह भी कहा था कि हमें सिखाया जाता है बेलो के सिर कलम करो तब ही मैदान ए जंग में दुश्मन के सिर कलम कर पायेगें।तो सुनो महोदय निर्दोष की जान से कोई नहीं सीखता है बल्कि दिमांग मे दुश्मन के खिलाफ आक्रोश से नफ़रत से जंग जीदी जाती है । अगर ऐसा होता तो गीता के ज्रान की क्यो अर्जुन को क्यो सिखाया ? कि तुम कर्म करो मोह का त्याग करो धर्म की जीत करो।आज हम सुनते है नवयुवक के दिमांग में नफ़रत के बीज इस तरह बोये जाते है उनके दिमांग पर नियन्त्रण करके मानव बंम बनाकर आंतक का खोपनाक चेहरा बनाकन हम इंसानो के बीच भेज देते है तो सिर्इ नंरसंघार करते है उनके लिए मानवता कुछ नहीं है।सारे खेल दिमांग का है हम जीव की लालच ममें इस तरह फस चुके है कि अपना मत सिद्ध करने के लिए तर्क करते है ।सच कहे सोचो तो हम किसी भी मृत प्राणी में जान नहीं डाल सकते तो हमें कुर्वानी और वली का सहारा लेकर निमयी हत्या भी नहीं कर सकते।जियो और जीने दो । यही अपनाना होगा उस ईस्वर ने हमें बनाया ही सबकी रक्षा करने के लिए तो यही करें धर्म की रक्षा के लिए अस्त्र शस्त्र है अपने निजी स्वार्थ के लिए क्यो जीव हत्या करना । शाकाहार हो सर्व शक्तिमान हो हाथी औन घोड़ा के समान ।तर्क वितर्क करते रहो तो को हल नही निकलेगा क्योकि सिक्के के दो पहलू है अगर हल खोजना है तो चाँद को देखो जो एक है अपका हितकर है,,,…”सोच बदलो देश बदलेगा”

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