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चुप थी अब तक सोंच रही थी,

साहित्य दर्पण
साहित्य दर्पण
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चुप थी अब तक सोंच रही थी,

सबके मंझर मैं देख रही थी!!

सबकी नीयत को टटोंल रही थी,

ह्रदय के बाण असहिष्णुता बोल रहे थे,

जिस भारत ने मान सम्मान है दिया,

उस भारत पर प्रश्न ?लगाते हो!!

जा कर देंखो बगदाद में कैसे कैसे?

कोम में इंसान के पटाखे छुङाते है!!

घुसपैठ कर पाक सरहद में कैसे?

मुम्बई राज्यों खून के आँसू रूलाते है!!

कहाँ गये थे ?खानो के खानदान तब,

वेटा वाप पर गोली दांग रहा था तब!!

लहु लुहान था जगह 2भारत हमारा,

आंतक ने कोहराम ऐसा बचाया था!!

सबको करोङो भारतीयों ने चमकाया,

हम दिखाते असहिष्णुता तो होते क्या?

जो हालत पाक में होती हिन्दुओ की ,

वो होती भारत में हालत तुम्हारी !!

हम अतिथि देवो भवः करते आदर,

सबको साथ ले विकास पथ चलते!!

दिखा दिया आँखो से पर्दा हटा दिया,

अपना है कौन?पाक की भाषा बोलता!!

चुप थी अब तक सोंच रही थी ,

सबके मंझर मैं देख रही थी!!

गली2शहर कितने है प्रतिमायें,

उम्मीद की लोह के लिए तरस रहे है!!

अपनी प्रतिमाओ का स्वप्न देखते ,

तारा बनकर आकाश हम भी दमके!!

तुम सब भी कहाँ सो रहे थे अबतक,

आंतक का साया हम सब पर छाया !!

कलम की तागत को अथियार बना लो,

टूट रहे खो रहे है सबको सच दिखा दो!!

जो करे न तलबार बंदूके कलम करे काम,

जोड़ दो सबको एक नया आयाम बना दों!!

मान का प्रतीक दिया अहम का ग्रास न बनो,

भारतीय हो शान ऐश्वर्य का परचम फैरा दो!!

सत्ताधारी के मकर जाल से तुम बेखोफ रहो,

सत्ता की चाल है हम सबको लङाने की !!

रोटी खूब सेकेगे फिरगीं बनकर ये सब,

हम पर राज ये सत्ताधारी बेसुध करेगे!!

भ्रंम का तिलिस्म तोङ दो सब बन्दुओ,

भारत जैसा और कोई हितकारी नहीं,

बंदन नहीं सबको स्वतंत्रता का मान मिले!!

मान को ऐसे यूही घात प्रतिघात न करो,

सो गलती होगी पार कृष्ण का चले सुर्दशन!!

(आकाँक्षा जादौंन)

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