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चेहरे पर नकाव

साहित्य दर्पण
साहित्य दर्पण
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चेहरे पर नकाब औरअलफाजों में राज,
जहाँ में छुपे कितने है फन सरताज !!
जब उतरता नकाव होता पर्दापास,
अपने अलफाज में खुलता है राज!!
मन की बात हो गये हैं राज पास,
मोदी जी राह वगुला चलें हँस चाल !!
फँसा भंवर में न उतरे पार डूबे महाकाल,
मोदी की शंतरज चाल में फँसे सब ताज!!
हित अहित न जाने खोल दीये सब राज,
अभिनय के दर्पण से होता साक्षातकार!!
आर्दशो की छाप लिए दिलो पर करते राज,
संर्घषशील एकसूत्र के तार हुए तार तार!!
नेता अभिनेता लेखक वैज्ञानिक समुदाय,
जनसमुदाय का उठता भ्रंम का पर्दा तार!!
भारत का हितकर कौन? डूबता जहाज,
विकास के पथ पर कौन? डालता लंगर!!
चेहरे पर नकाव और अलफाजो में राज,
जहाँ में छुपे कितने हैं फर सरताज!!
नत मंस्तिष्क झुकाती है कलम हमारी,
मोदी जी के मन की बात की सहारना में !
खुल रहे है चेहरे से कितने नकाव नकाव,
अपने ही अलफाजों में फँस रहे है राज!!
(आकाँक्षा जादौन)

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