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धर्म के ठेकेदार

साहित्य दर्पण
साहित्य दर्पण
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धर्म के ठेकेदार चौकीदार
तुमको बतलाने आई हूँ!!

देवालय में प्रतिबंध लगाकर,
कायरता की हरकत दिखाई!!
रोक सकों तो मन हृदय को,
जिसमें आत्मा राम समाया है!!
परकोठे में स्थिर होते राम,
जग उजाला होता तब तममय!!
हर रूप में राम ही राम समाया,
अन्नत अविनासी है जिसका सार!!
नारी के अधिकार का तिरस्कार,
मान सम्मान दिलाने आई हूँ!!
श्रेठ सिद्ध बनने का अधिकार,
अंहकार को ग्रास बनाने आई हूँ!!
रूडवादी परम्पराओ का बदलाव,
अवला में शक्ति दिखाने आई हूँ!!
स्वय प्रभु ने हमको दिया दान,
स्वयं से पहले नाम लिया शक्ति!!
लिया जाता हैं गोरीशंकर!
लिया जाता हैं सीताराम!
लिया जाता हैं राधेश्याम!
लिया जाता हैं माता पिता!
स्वयं कहलाये हैं नारीश्वर,
फिर हम कयों खण्ड भिन्न!!
बरावर का हक़ लेने आई हूँ!!!
चौकीदार लगाना हैं प्रतिबंध,
गर्भ में मिटती हैं कली!
दहेज की भेट चङी हैं नारी!
वासना की भेट चङी हैं नारी!
तिरस्कार में दबी है नारी!
हम भी अगर भेद करते?
प्रकृति स्वरूप वरदान न देतें!
गंगा स्वरूप अभयदान न देंते!
शक्ति स्वरूप वल न देंते!
नारी स्वरूप संसार न देते!
धर्म के ठेकेदार चौकीदार,
तुमको बतलाने आई हूँ!!
नारी के स्वाभिमान को पर,
आकाश में शेर कराने आई हूँ!!
अछूता नहीं कोई रहा स्थान,
हर जगह वर्चस्व दिखाया हैं!!
अपने हुनर का दमखम,
जहाँ को दिखलाया हैं!!
मेहदीं वाले हाथो में हमनें,
तलवारे बंदूके दिखलाया हैं!!
लाज घूँघट वाले शीष पर हमनें,
अंतरिक्ष का ताज दिखलाया हैं!!
कोमल अंगो का दमखम हमनें,
तागत का होशला दिखलाया हैं!!
गृहस्थी की बुद्धि का राजपाठ,
सत्ता में राजकर दिखलाया हैं!!
गृह की स्वामिनी करती राज,
विश्व पर कर राज दिखलाया हैं!!
हमारे क्रोध की पराकाष्ठा,
नव युग अवतरण करवाया हैं!!
अंहकार के भसीभूत बुद्धिजीवी,
युद्ध से सर्वनाश कर दिखलाया हैं!!
रामायण महाभारत की गाथा,
नारी के क्रोध का ग्रास बनवाया हैं!!
धर्म के ठेकेदारो चौकीदार को स्यमं
वरावर का अधिकार समझाने आई हूँ!!
देवालय में प्रतिबंध हटाकर,
नारी का सम्मान कराने आई हूँ!!

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