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सिसकती धरती

साहित्य दर्पण
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हे सिसकती धरती नेत्रो से आँसू न रूके,
किये वार खंजर से तो दुनिया न रूके!!
हे सिसकती धरती नेत्रो से आंसू न रूके,
हे हर तरफ़ सन्नाटा ये जुवाँ न रूके!!
फैली हुई वायें खोजती सूरमाओ को,
कौन उम्मीद करे!!
हे हर ओर आम मिटने के लिए,
कोई कैसे धीर धरें!!
देखे न वेटा वाप को भतीजा चचा को!!
किस पर विश्वास करें !!
हो रही कच्ची डोर रिस्तो की,
किसकी कौन आस करें!!
हे सिसकती धरती नेत्रो से आंसू न रूके,
किये वार खंजर से तो दुनिया न रुके!!
हैं खून का प्यासा जमाना छाया मातम,
चिराग कौन दिखायें!!
दौलत के भूखे लोगो में अब कहाँ,
इंसानियत न दिखे!!
लूटी जा रही अस्मत खोफ हर ओर घना,
रक्षक कौन बनें !!
सहमे हुए लोगो को अब कौन,
धीरज कौन धरें!!
हे सिसकती धरती नेत्रो से आँसून रूके,
किए वार खंजर से तो दुनिया न रूके!!
लूटी गई पूंजी नहीं वापस मिलती
सुध कौन हरें!!
पछताये तब होत हे क्या?
चिङियाँ खेत जो चुगें!!
हे सिसकती धरती नेत्रो से आंसू न रूके,
हे हर तरफ़ सन्नाटा ये जुवा न रूके!!

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