Menu
blogid : 19918 postid : 1154801

भय (कहानी)

साहित्य दर्पण
साहित्य दर्पण
  • 64 Posts
  • 33 Comments

किशनपुर गाँव में दो भाई रहते थें।बड़े भाई का नाम सिया और छोटे का नाम लखन था।सिया की चौखट से कोई साधु महात्मा या भिखारी निराश होकर नहीं लोटता था।भूखे व्यक्ति को भोजन और प्यासे को पानी पिलाना अपना कर्तव्य समझता था। सिया की बाँतो में शहद सी  मिठास थी,जो हर किसी को अपनी और खीच लेता था ।सिया की वाणी में पूरा गाँव मन मुग्ध था।सिया के चर्चे दूर दूर तक थे,जितना ही गाँव वालो को सिया से स्नेह था उतनी ही लखन से घृणा  थी ।

                                    लखन अपने भाई सिया के विपरीत था किसी कीभी सेवा नहीं करता था।लखन के मन में लालच और छल कूट कूट कर भरा था।अपनी लालच के कारण सिया को वँटवारे में बरावर हिस्सा नहीं दिया जो भूमि दी वो अनुउपजाऊ थी।जहाँ ककड पत्थर घास का तिनका भी नहीँ उगता था वहाँ पर सिया की मेहनत से हँसते मुस्कराते लहराते खेतो में उम्मीद की किरणे बिखरने लगी ।भूमि उपजाऊ बन गई और अनाज के ठेर देख कर ,लखन को जलन हुई।लखन उपजाऊ भूमि में सिया से कम अनाज देखा ये भी उसका मेहनतौका नतीजा था।मेहनत करता नहीं था बस जलता था दूसरो को देखकर–

                                        सिया को कुशहाल देखकर,लखन को ईष्या होने लगीं।सिया से भूमि हङपने के लिए षङयन्त्र रचने लगा ।सही मौक़े की तलाश थीं।सब अपने कार्य में मगन थे ,पर लखन के मन में कुछ और ही था।जिस मौक़े की तलाश थी वो पल आ गया ।

                                         सिया को किसी कारण से शहर जाना था ,जिसकी खबर लखन को एक दिन पहले ही लग चुकी थी।लखन सिया से पहले शहर चला गया और अपने जाने की सूचना पङौसी को दी ताकि उस पर किसी का शंक न जायें।

लखन—चाचा मैं शहर जा रहा हूँ ,अगर कोई काम है तो कहो?

चाचा –ने जब बात सुनी तो दग रह गये और सोच रहे थे ,आज अचानक मेरा ख़्याल क्यो आया ?जो कभी हालचाल भी नहीं पूछता था वो आज काम की बात कर रहा हैं।चलो अच्छा है ,जब आँखे खुले तभी सवेरा।लखन अगर तू शहर जा रहा है, तो मेरे लिए आँखो वाली दवा ले आना।

लखन–ठीक है चाचा।

सिया दूसरे दिन शहर जाने के लिए गाँव से निकला तो उसे रास्ते में एक बूढ़ा व्यक्ति मिला जो ज़ोर ज़ोर से काँप रहा था।उसके वदन पर कपङे नहीं थे ,हालत गम्भीर थी।लम्बी दाढ़ी बिखरे बाल जो दीवार की टेक लगा के वैठा था, और कहरा रहा था।सिया के काँनो में दर्द केकी आवाज़ काँनो में पढ़ी तो बढ़ते कदम रुक गया ।इधर उधर देखा तो उसे बूढ़ा व्यक्ति नज़र आ गया और उसके पास गया ।सिया ने आवाज़ दी…….चाचा ऐसे कहरा रहे क्यों हो?जिस आवाज में दर्द की आवाज़ है पर जवाव नहीं मिला ।सिया ने छूके देखा तो उसका बदन दहकते शोले के समान तप रहा था ।एक पल की देर किये अपने पास से सोल उस व्यक्ति को उड़ा दी ।बाबा आपको तो बुखार है चलो आपको हकीम के पास ले चलूँ जो कुछ ही दूरी पर है ।

उस बूढ़े व्यक्ति की धीमे स्वर से आवाज़ निकली —वैता बस सर्दी लग रही है जो ठीक हो जायेगी ।

सिया —–चाचा आप हमारे साथ चलो हकीम पास में ही है।दवा देगे बुखार ठीक हो जायेगा।

चाचा—-नही वेटा बुढ़ापे के लक्षण है ।

सिया —नहीं चाचा ।आपकी एक बात नहीं मानूँगा आप बस चलो ,हमारे साथ जब तक बुखार कम नहीं हो जायेगा तब तक मे भी कही नहीं जाऊँगा।

सिया चाचा को लेकर हकीम के पास गया और वही ठहर गया ।शाम भी हो चुकी थी ।

हकीम —सिया जैसा अगर हर कोई इंसान हो जाये तो दुनिया स्वर्ग से भी सुन्दर हो जायेगी।अब तुम चिन्ता मत करो सब ठीक हो जायेगा ।तुम कही जा रहे थे ?

सिया—-हाँ ।शहर जा रहा था, काम था खेती के लिए दवा बीज लेने पर रास्ते मे चाचा की हालत ठीक न लगी, तो रुक गया और आपके पास ले आया ।

हकीम —-शाम हो गई है ।तुम यही रुक जाओ कल चले जाना ।

सिया को हकीम के यहाँ पर रुकना पड़ा।

                                     लखन रास्ते में सिया का इंताजार कर रहा था कि कब साईकल सिया की नज़र आयें।ज़मीन के बीच काँटे को अपने रास्ते से हटा दूँ तो सारी ज़मीन मेरी होगी।दिन गुज़र गया शाम भी हो गई पर सिया नज़र नहीं आया और राहगीरो का आना जाना लगा रहा जो शाम के बाद आना जाना भी बंद हो गया।अब लखन को डर लगने लगा ।धीरे धीरे अंधेरी रात होने लगी।जंगल से जानवरो की आवाजे आने लगी जिससे लखन भयभीत होने लगा ।अपनी जान बचाने के लिए पेड़ पर चढ़ गया ।भय के कारण प्यास भूख चली गई थी ।अपने प्राण को बचाने का ख़्याल था कि किसी भी तरह आज की रात गुज़र जाये।मैं अपने घर पहुँच जाऊँ ।

                                              मन मे तरह तरह के ख़्याल आ रहा था ।आधी रात बीत गई,तभी उसी पेढ के नीचे बदमाश आ गयें।उनको देखा तो और काँपने लगा ।इसी डर के बजय से पसीने मे लथपथ हो गया।लखन को अपने भाई सिया की बाते याद आने लगी।सिया कहता था कि बुरे के साथ बुरा और अच्छे के साथ अच्छा होता हैं।प्रभु से बिनती करने लगा ,”प्रभु आज मुझे बचा लो,अब मैं कोई बुरा काम नहीं करूँगा।”लालच को छोङ दूँगा।लखन के पसीने की बूदे बदमाश के ऊपर गिरी—–

बदमाश—कोई है?तो दूसरे बदमाश ने पूछाँ,”क्या हुआ?

बदमाश–मेरे बाज़ू पर पानी कैसा?लगताहै कोई है यहाँ?

दूसरे मदमाश ने कहाँ,”कोई नहीं है?”इस सूनसान जंगल में कौन आयेगा।किसको अपनी मृत्यु का भय नहीं है?पक्षी होगा।

पहला बदमाश—–तुम ठीक कहते हो।

यह सब बाते लखन सुन रहा था।सूरज की किरण नज़र आई ।पक्षी आकाश में उडने लगें।सब चहचाहट कर कह रहे हो कि अपना अपना काम करो ।लखन पेङ से उतर आया और उसने भागना शुरू किया सामने सिया को देखा तो रोने लगा।

सिया—-तुम इतने डरे सहमें क्यों हो?क्या हुआ?

मखन—भाई मुझे माफ़ कर दो मुझसे बहुत बङी गलती हो गई ।आज अहसास हुआ है कि मृत्यु  ।भय के क्या होता है।मृत्यु से ख़तरनाक  उसका भय होता है।

सिया —-लखन तुम कहना क्या चाहते हो?

लखन ने सारी घटाना बता दी।भाई मुझे माफ़ कर दो।

सिया—-लखन इसमें माफ़ी कैसी प्रभु ने तुम्हे अवसर प्रदान किया है सत्य के पथ पर चलने का।उस अवसर का लाभ उठाओ जो हुआ उसको बुरा सपना समझ कर भूल जाओ और आगे बडो।

लखन ने लालच छल कपट छोङ दिया और सिया के पद चिन्हो पर चलने लगा और दोनो को सिया लखन से जानने लगें।
आकाँक्षा जादौन

Read Comments

    Post a comment